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केकड़ा और उसकी माँ
(किसी को उपदेश
या सलाह देने से बेहतर है, उस काम को खुद करके देख लेना।)
एक गाँव के पास एक नदी थी।
नदी के बहुत सारी मछलीयाँ थी। उसी नदी में बहुत सारे केकड़े भी रहते थे। उसी नदी
में एक छोटा केकड़ा अपनी माँ के साथ रहता था।
एक दिन छोटे केकड़े
की मां ने अपने बेटे से कहा, "मेरे बेटे,
तुम इस तरह टेड़े मड़े होकर क्यों चलते हो?
तुम सीधे होकर क्यों नहीं चलते हो? तुम्हें सीधे चलना चाहिए।"
यह सुनकर, उस
छोटे केकड़े ने माँ के कहे अनुसार चलना शुरु किया पर वो हर बार थोड़ा बगल होकर ही
चल पा रहा था। उसकी माँ ने फिर से बोला कि थोड़ा ढंग से चलो। मगर बहुत कोशिश करने
के बाद भी जब केकड़े से न चला गया तो
युवा केकड़े ने माँ
से बोला, ", अच्छा माँ, आप मुझे दिखाओ कि कैसे
मुझे चलना चाहिए और मैं आपके
बताये अनुसार ही चलूगां।"
उनकी यह सारी
हरकतों को वहाँ के सारे जीव जन्तु भी देख रहे थे।
अब केकड़े की माँ
ने कहा कि ठीक है मैं तुम्हे करके दिखाती हूँ और यह कह कर उसने सीधे चलने की कोशिश
की. मगर यह क्या ? केकड़े की माँ भी बगल होकर टेड़ा मेड़ा ही चल रही थी।
केकड़े की माँ ने बहुत कोशिश की, लेकिन सारी कोशिश बेकार गई। यह देखकर सभी जीव
हंसने लगे।
केकड़े की माँ ने देखा कि वह अपने बच्चे में दोष खोज रही थी जबकि
वो खुद भी न कर पाई।
तब एक बड़े
बुर्जुग से केकड़े ने आकर कहा कि पहले अगर तुम खुद करके देख लेती तो तुम यह बात
समझ जाती और सबके सामने मुर्ख न बनती।
शिक्षा ---
किसी को उपदेश या
सलाह देने से बेहतर है, उस काम को खुद करके देख लेना।
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