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मोर और सारस
एक सारस और मोर में बहुत गहरी मित्रता थी । वे हमेशा साथ-साथ रहते थे । एक बार मोर सारस का मजाक उड़ाने लगा: ”मित्र, मेरे सुन्दर पंखों और रंग-बिरंगी पूँछ को देखो । मैं कितना ज्यादा सुंदर हूं ।
अब जरा खुद को देखो । तुम तो बिल्कुल भी सुदर नहीं हो । तुम एक ही रंग के बने हो।” यह कहकर मोर नाचने लगा । सारस को यह बात बिल्कुल भी पसंद नहीं आई । उसे मोर पर बहुत आश्चर्य हुआ । सारस, मोर को अपना भाई जैसा मानता था।
तब सारस ने मोर को सबक सिखाने के लिए जवाब दिया : "मित्र, इसमें कोई शक नहीं कि तुम्हारे पूंछ व पंख बहुत ही सुंदर हैं । तुम अच्छा नाच भी सकते हो। मगर मुझे दुख के साथ यह कहना पड़ रहा है कि तुम्हारे सुंदर पंख व पूंछ किसी काम के नहीं हैं । और मैं यह बताता हूँ की कैसे ?
मुझे देखो मैं आकाश में ऊचा उड़ सकता हूँ , और क्या तुम उड़ सकते हो ? । यह कहकर सारस आकाश में उड़ गया । आकाश में पहुंच कर सारस ने आवाज दिया : ” आओ मेरे मित्र, मेरे साथ उडो ।”
पर भला मोर कैसे उड़ सकता था। र्शम के मारे मोर का सिर नीचे हो गया ।
इसलिए बड़े लोग कह गये हैं :
गर्व योग्यता पर करें, न कि सुंदरता पर।
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